Telecom Company : Vodafone-Idea पर गहराया संकट, क्या बंद हो जाएंगी यें कंपनी?
नई दिल्ली:- Telecom Company, Vodafone-Idea जैसा कि पिछले कुछ समय से देखने को मिल रहा है की टेलीकॉम कंपनियों में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ लगी है. वहीं कुछ ऐसी कंपनियां भी हैं जो इस समय बहुत पीछे रह गई हैं. हम बात कर रहे हैं वोडाफोन और आइडिया कंपनी की, जो गहरे संकट में फंस गई हैं. एक घरेलू ब्रोकरेज कंपनी ने कहा कि बढ़ते कर्ज के कारण कंपनी अपना परिचालन बंद कर सकती है. उनके द्वारा यह भी कहा गया कि भारतीय रिजर्व बैंक के महंगाई के स्तर दर से ऊपर रहने के बीच टेलीकॉम कंपनियां अगले साल आम चुनाव के बाद जून 2024 में शुल्क दरें बढ़ाना शुरू कर देंगी.
नहीं कर पाएगी 5G सेवाएं शुरू
कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज की एक रिपोर्ट के अनुसार शुल्क दर की वृद्धि के अभाव में वोडाफोन-आइडिया कंपनी जरूरी निवेश नहीं कर पाएगी और ना ही 5जी सुविधाएं शुरू कर पाएगी. इस कारण कंपनी के ग्राहकों की संख्या घट जाएगी और इससे पूंजी जुटाने की योजना कंपनी के लिए और मुश्किल हो जाएगी. एक रिपोर्ट के अनुसार इसके बाद भारतीय बाजार में रिलायंस जियो और एयरटेल कंपनियां ही रह जाएंगी. अब दीर्घकाल में इन दो कंपनियों के एकाधिकार को लेकर चिंता है.
शुल्क दर में वृद्धि का Vi पर पड़ेगा असर
ब्रोकरेज कंपनी की माने तो अगले साल आम चुनाव के बाद ही जून 2024 में टेलीकॉम कंपनियां अपने शुल्क में वृद्धि करेंगी. इसका मुख्य कारण राज्यों में चुनाव तथा मुद्रास्फीति का RBI के संतोषजनक दायरे से ऊपर होना है. शुल्क दरों में वृद्धि की देरी से वोडाफोन आइडिया कंपनी पर काफी असर पड़ेगा. रिपोर्ट की मानें तो कंपनी का टिके रहना मुश्किल हो जाएगा और इसके बाद बाजार में दो कंपनियों के एकाधिकार को लेकर चिंता होगी.
5G सेवा शुरू करने के लिए निवेश बढ़ाने की जरूरत
एक्सपर्ट्स का कहना है कि कंपनी को 4G का दायरा बढ़ाने और 5G की सेवाएं शुरू करने के लिए निवेश करने की जरूरत है. अगर कंपनी निवेश नहीं करती है तो उसकी बाजार में हिस्सेदारी कम होती जाएगी. रिपोर्ट की माने तो वोडाफोन आइडिया कंपनी को अगले 12 महीनों में 5,500 करोड रुपए की कमी का सामना करना पड़ सकता है. इसके साथ ही शुल्क दरें ना बढ़ाने और पूंजी इकट्ठा ना कर पाने की वजह से कंपनी का परिचालन बंद हो सकता है. ब्रोकरेज कंपनी द्वारा साफ कर दिया गया है कि 2.3 लाख करोड रुपए का कर्ज और बाजार में कम होती हिस्सेदारी के चलते कंपनी को कोष इकट्ठा करना बहुत मुश्किल होगा.